Posts

Showing posts from October, 2023

102. परिणाम का समभाव से स्वीकार

Image
श्रीकृष्ण कहते हैं कि योगी , संङ्गं (आसक्ति) को त्यागकर , केवल इंद्रियों-शरीर , मन और बुद्धि द्वारा अंत: करण की शुद्धि के लिए कर्म करते हैं ( 5.11) । यह व्याख्या की जाती है कि भले ही कोई वर्तमान क्षण में आसक्ति को छोड़ देता है , उसके पिछले कर्मबंधन पर ध्यान देने की आवश्यकता होती है। इसलिए वह कर्म करता रहता है। इसे देखने का एक और तरीका यह है कि एक बार अनासक्त होने के बाद , उसके पास भौतिक या प्रकट दुनिया में प्राप्त करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है और सभी कार्यों से अंत: करण की शुद्धि होती है। श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि , ‘‘ युक्त कर्म के फल को त्यागकर , शाश्वत शांति प्राप्त करता है , जबकि अयुक्त , इच्छा से प्रेरित और फल से आसक्त होकर बंधता है’’ ( 5.12) । गीता के आधारभूत स्तंभों में से एक यह है कि कर्म पर हमारा अधिकार है , लेकिन कर्मफल पर नहीं है ( 2.47) । कर्मफल को त्यागने का अर्थ है कि किसी विशिष्ट परिणाम के लिए कोई वरीयता नहीं है क्योंकि किसी भी परिणाम को समभाव के साथ स्वीकार करने के लिए तैयार हैं , चाहे वह कितना ही अद्भुत या भयानक हो। श्रीकृष्ण ने पहले कहा था कि अयुक्त में बुद्धि और

101. कमल के पत्ते का अनुकरण

Image
प्रत्येक भौतिक प्रणाली अलग-अलग इनपुट लेती है और कुछ आउटपुट उत्पन्न करती हंै। हम शब्दों और कर्मों जैसे अपने आउटपुट को लगातार मापते या आंकते हैं। हम दूसरों के कार्यों के साथ-साथ अपने आस-पास की विभिन्न स्थितियों को भी आंकते हैं। वास्तव में , विकासवादी प्रक्रिया में , हमारे लिए खतरों को पहचानना बहुत जरूरी था। हालाँकि , समस्या कर्मों को सही या गलत निर्धारित करने के लिए मानकों के अभाव में है , जिसकी वजह से हम अक्सर अज्ञानता पर आधारित धारणाओं और विश्वास प्रणालियों पर निर्भर रहते हैं। जब भी हम किसी ऐसे स्थिति का सामना करते हैं जो हमारे विश्वास प्रणाली के अनुरूप होता है , तो हम खुश और संतुष्ट महसूस करते हैं। इस संबंध में , श्रीकृष्ण कहते हैं कि , ‘‘ जिसका मन अपने वश में है , जो जितेन्द्रिय एवम विशुद्ध अंत:करणवाला है और सम्पूर्ण प्राणियों का आत्मरूप परमात्मा ही जिसका आत्मा है , ऐसा कर्मयोगी कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता’’ ( 5.7) । यह प्रभु की ओर से एक आश्वासन है कि हमारे कर्म किन परिस्थितियों में कलंकित नहीं होंगे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि शुद्ध व्यक्ति द्वारा किए गए कर्म कलंकित नहीं होते

99. द्वेष का त्याग करें, कर्म नहीं

Image
99. द्वेष का त्याग करें, कर्म नहीं अज्ञान के कारण व्यक्ति भौतिक संपत्ति को हड़पने में लगा रहता है जिससे कर्मबंधन में बंधता है। जब जागरूकता की पहली किरण उतरती है, तो वह त्याग के बारे में सोचने लगता है जैसे अर्जुन यहां कोशिश कर रहे हैं। भ्रम इस बात में है कि क्या त्याग करें। सामान्य प्रवृत्ति सभी कर्मों या कार्यों को त्याग करने की होती है, क्योंकि हम उन्हें हमेशा अपने विभाजन करने वाले मन से अच्छे या बुरे के रूप में विभाजन करते हैं और अवांछित कर्मों को छोडऩा चाहते हैं। दूसरी ओर, श्रीकृष्ण त्याग के संबंध में एक अलग धारणा प्रस्तुत करते हुए कहते हैं, ‘‘जो पुरुष न किसी से द्वेष करता है और न किसी की आकांक्षा करता है, वह कर्मयोगी नित्यसंन्यासी ही समझने योग्य है, क्योंकि राग-द्वेषादि द्वंद्वों से रहित पुरुष सुखपूर्वक संसारबंधन से मुक्त हो जाता है’’ (5.3)। पहली चीज जिसका हमें त्याग करना चाहिए वह है द्वेष। यह किसी भी चीज के प्रति हो सकता है जो हमारी मान्यताओं के खिलाफ जाती है जैसे धर्म, जाति या राष्ट्रीयता। नफरत हमारे पेशे, लोगों या हमारे आसपास की चीजों के प्रति हो सकती है।  अंतर्व

98. करें या न करें

Image
अर्जुन पूछते हैं , हे कृष्ण , आप कर्म-संन्यास की प्रशंसा करते हैं और फिर भी आप उनके निष्पादन की सलाह भी देते हैं। मुझे निश्चित रूप से बताएं , कौन सा बेहतर मार्ग है ( 5.1) । पहले भी एक बार , अर्जुन सांख्य और कर्म ( 3.1) के रास्तों के बीच निश्चितता की तलाश में थे ( 3.2) । श्रीकृष्ण , हालांकि , कर्म के त्याग की सलाह नहीं देते हैं और इसके बजाय , वे कहते हैं कि कर्म के त्याग से सिद्धि प्राप्त नहीं होती है ( 3.4) । व्यक्ति को अपने गुणों  के अनुसार कर्म करने के लिए मजबूर किया जाता है ( 3.5) । वास्तव में , कर्म के बिना मानव शरीर का रखरखाव भी संभव नहीं है ( 3.8) । श्रीकृष्ण के उत्तर से स्पष्टता आती है कि कर्म-संन्यास सांख्य योग का एक हिस्सा है। मूल रूप से कर्म के दो पहलू होते हैं। एक कर्ता है और दूसरा कर्मफल है। कर्तापन की भावना को छोडऩा यह जानकर कि गुण ही वास्तविक कर्ता हैं ; और वर्णन योग्य है कि अर्जुन इसे कर्म-संन्यास के रूप में संदर्भित कर रहे हैं। वह बाद में कर्मफल की अपेक्षा किए बिना कर्म करने को कर्म के निष्पादन के रूप में संदर्भित करते है। संक्षेप में , अर्जुन पूछ रह