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180. साकार या निराकार

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  भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय के अंत में (11.55) , श्रीकृष्ण कहते हैं कि उन तक केवल भक्ति के माध्यम से ही पहुंचा जा सकता है। इस प्रकार , भगवद गीता के श्रद्धेय बारहवें अध्याय को भक्ति योग कहा जाता है। श्रीकृष्ण के विश्वरूप को देखकर अर्जुन भयभीत हो गए और उन्होंने पूछा , " आपके साकार रूप पर दृढ़तापूर्वक निरन्तर समर्पित होने वालों को या आपके अव्यक्त निराकार रूप की आराधना करने वालों में से आप किसे योग में उत्तम मानते हैं " (12.1) ? संयोगवश , सभी संस्कृतियों की जड़ें इसी प्रश्न में हैं। गीता में तीन व्यापक मार्ग दिये गये हैं। मन उन्मुख लोगों के लिए कर्म , बुद्धि उन्मुख के लिए सांख्य ( जागरूकता ) और हृदय उन्मुख के लिए भक्ति। ये अलग - अलग रास्ते नहीं हैं और उनके बीच बहुत सी आदान - प्रदान होती है और यही इस अध्याय में दिखता है। श्रीकृष्ण ने पहले एक पदानुक्रम दिया और कहा कि मन इंद्रियों से श्रेष्ठ है ; बुद्धि मन से श्रेष्ठ है और बुद्धि से ...

179. बदलते लक्ष्य

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  मानसिक अस्पताल में काम करने वाला एक डॉक्टर अपने एक दोस्त को अस्पताल दिखाने ले गया। उसके दोस्त ने एक कमरे में एक आदमी को एक महिला की तस्वीर के साथ देखा और डॉक्टर ने बताया कि वह आदमी उस महिला से प्यार करता था और जब वह उससे शादी नहीं कर सका तो मानसिक रूप से अस्थिर हो गया। अगले कमरे में , उसी महिला की तस्वीर के साथ एक और आदमी था और डॉक्टर ने बताया कि उससे शादी करने के बाद वह मानसिक रूप से अस्थिर हो गया था। यह विडम्बना से भरी हुई कहानी बताती है कि पूर्ण और अपूर्ण इच्छाओं के एक जैसे विनाशकारी परिणाम कैसे हो सकते हैं।   अर्जुन के साथ भी यही हुआ। भगवद गीता के ग्यारहवें अध्याय ' विश्वरूप दर्शन योग ' के प्रारंभ में , वह श्रीकृष्ण का विश्वरूप देखना चाहते थे। लेकिन जब उन्होंने श्रीकृष्ण के विश्वरूप को देखा तो वह भयभीत हो गए। चिंतित अर्जुन अब श्रीकृष्ण को उनके मानव रूप में देखने की इच्छा प्रकट करते हैं। इसी तरह , जीवन में हम...