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Showing posts from July, 2022

10. महामारी में श्रीकृष्ण

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गीता में कई अचूक उपाय हैं जो तमाम दरवाजे खोलने और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने की क्षमता रखते हैं। ऐसा ही एक अचूक उपाय है स्वयं को दूसरों में और दूसरों को स्वयं में देखना। श्रीकृष्ण हमें यह महसूस करने के लिए कहते हैं कि वे हम सभी में हैं और वह अव्यक्त या निरंकार की ओर इशारा कर रहे हैं। श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत में कहते हैं कि अपने आप में उस समझ को प्राप्त करें जिससे विभाजन $खत्म हो जाता है और उस अवस्था में हम गधे या चोर को ठीक उसी प्रकार नमन करें जैसे कि हम भगवान को नमन करते हैं। इंद्रियों द्वारा प्रेषित जानकारी के आधार पर, हमारे दिमाग को स्थितियों को सुरक्षित/सुखद या असुरक्षित/अप्रिय में विभाजित करने के लिए सूचीबध्द किया गया है। यह हमें आनेवाले खतरों से खुद को बचाने के लिए आवश्यक और उपयोगी है। किसी भी तकनीक की तरह, दिमाग भी दोधारी होता है और हम पर हावी होने के लिये अपने दायरे को पार कर जाता है। यह अनिवार्य रूप से अहंकार का जन्म स्थान है। यह अचूक उपाय हमें सिखाता है कि विभाजन को कम करने के लिए दिमाग को गुलाम बनाएं (काबू में रखें) ताकि सामंजस्य या

9. मित्र और शत्रु की पहचान

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गीता में , भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आप स्वयं अपने मित्र हैं और आप स्वयं अपने शत्रु हैं। सुराही में फँसे बन्दर की कहानी इसे अच्छी तरह से दर्शाती है। कुछ मेवों को एक सुराही में रखा जाता है जिसमें बन्दर का हाथ मुश्किल से अन्दर जा पाता है। बंदर सुराही के मुंह से हाथ डालता है और मुट्ठी भर के मेवा पकड़ लेता है। मुट्ठी भर जाने से हाथ का आकार बढ़ जाता है और वह सुराही से बाहर नहीं आ सकता। मेवों से भरे हाथ को सुराही से बाहर निकालने के लिए बन्दर हर तरह की कोशिश करता है। वह सोचता रहता है कि उसके लिए किसी ने जाल बिछाया है और उसे कभी पता ही नहीं चलता कि अपने विरुद्ध यह जाल स्वयं उसने बिछाया है। किसी भी प्रकार की सलाह बन्दर को इन मेवों को छोडऩे के लिए मना नहीं सकता , बल्कि वह यह सोचता है कि हम उसके मेवों को हड़पने की कोशिश कर रहे हैं। बाहर से देखने में यह काफी सरल लगता है कि मुट्ठी को ढीला करने के लिए इसमें

8. व्यक्त और अव्यक्त

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  पतवार से जुड़े एक छोटे से यंत्र ‘ ट्रिम टैब ’ में एक हल्का सा बदलाव एक बड़े जहाज की दिशा को बदल देता है। इसी तरह , गीता का अध्ययन करने के लिए एक हल्का सा प्रयास हमारे जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव ला सकता है। महामारी की वजह से उपलब्ध समय गीता में गोता लगाने के लिये किया जा सकता है , जो जीवन में बहुत बड़ा बदलाव ला सकता है। गीता किंडरगार्टन से लेकर पोस्ट ग्रेजुएशन तक आंतरिक बोध के लिए एक शाश्वत पाठ्य पुस्तक है और संभावना है कि पहली बार पढऩे पर इसकी बहुत कम अवधारणाएँ समझ में आएंगी। यदि हम अव्यक्त और व्यक्त की दृष्टिकोण से अवलोकन करें तो उन्हें आसानी से समझा जा सकता है। अव्यक्त वह है जो हमारी इन्द्रियों से परे है और व्यक्त वह है जो इन्द्रियों के दायरे में है। व्यक्त होने की कहानी बिग बैंग से लेकर सितारों के निर्माण तक , इन सितारों के अन्तर्भाग में उच्च रासायनिक तत्वों के परमाणुओं का विलय , सितारों के विस्फोट में इन

7. निमित्त मात्र

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 श्रीमद्भगवद्गीता   का जन्म रणक्षेत्र में हुआ था और वर्तमान महामारी ( कोविड -19) का समय कुरुक्षेत्र युद्ध के समान हैं। गीता में एक वाक्यांश ‘ निमित्त मात्र ’ यानी ‘ सर्वशक्तिमान के हाथों में एक उपकरण ’ बड़े स्पष्ट तरीके से इसका सार प्रस्तुत करता है। अर्जुन श्रीकृष्ण की वास्तविकता का यथार्थ देखना चाहता था और उसे समझने के लिए एक अतिरिक्त ज्ञान की आवश्यकता थी , जैसे अंधे को पूर्ण हाथी को देखने के लिए आंख की आवश्यकता होती है। भगवान श्रीकृष्ण ने उसे अपने विश्वरूप को देखने के लिए दिव्य चक्षु दिया था। विश्वरूप दिखाने के अलावा , श्रीकृष्ण उसे भविष्य तक देखने की दृष्टि प्रदान करते हैं और अर्जुन देखता है कि कई योद्धा मौत के मुंह में प्रवेश कर रहे हैं। तब भगवान अर्जुन को बताते हैं कि ये योद्धा जल्द ही मर जाएंगे। तुम उस प्रक्रिया में सिर्फ एक साधन हो। श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि अर्जुन कर्ता नहीं है और दूसरी बात , वह यह सुनिश्चित करते

6. कानून का नियमन

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 गीता   आंतरिक दुनिया में समत्व और सद्भाव बनाए रखने के बारे में है जबकि कानून बाहरी दुनिया में व्यवस्था बनाए रखने के बारे में है। किसी भी कार्य के दो भाग होते हैं , एक है इरादा और दूसरा है निष्पादन यानी उसे पूरा करना। कानून के शब्दावली में , उन्हें अपराध के संदर्भ में , लैटिन शब्दों में , क्रमश : ‘ मेन्स रिया ’ और ‘ एक्टस रिउस ’ कहा जाता है। उदाहरण के लिए , एक सर्जन और एक हत्यारा दोनों ही चाकू का इस्तेमाल करते हैं। सर्जन का इरादा व्यक्ति का जीवन बचाने या इलाज करने का होता है , लेकिन हत्यारे का इरादा नुकसान पहुँचाना या मारना होता है। मौत दोनों ही स्थितियों में हो सकती है , लेकिन इरादे बिल्कुल विपरीत होते हैं। कानून परिस्थितिजन्य है जबकि गीता शाश्वत है। सडक़ के बाईं ओर गाड़ी चलाना एक देश में कानूनी है और दूसरे देश में यह अपराध हो सकता है। कानून परिस्थितियों को सही या गलत में विभाजित करता है , लेकिन जीवन में कई संदेहास्पद क्षेत