10. महामारी में श्रीकृष्ण
गीता में कई अचूक उपाय हैं जो तमाम दरवाजे खोलने और आत्म-साक्षात्कार के मार्ग में आने वाली बाधाओं को दूर करने की क्षमता रखते हैं। ऐसा ही एक अचूक उपाय है स्वयं को दूसरों में और दूसरों को स्वयं में देखना। श्रीकृष्ण हमें यह महसूस करने के लिए कहते हैं कि वे हम सभी में हैं और वह अव्यक्त या निरंकार की ओर इशारा कर रहे हैं। श्रीकृष्ण श्रीमद्भागवत में कहते हैं कि अपने आप में उस समझ को प्राप्त करें जिससे विभाजन $खत्म हो जाता है और उस अवस्था में हम गधे या चोर को ठीक उसी प्रकार नमन करें जैसे कि हम भगवान को नमन करते हैं।
इंद्रियों द्वारा प्रेषित जानकारी के आधार पर, हमारे दिमाग को स्थितियों को सुरक्षित/सुखद या असुरक्षित/अप्रिय में विभाजित करने के लिए सूचीबध्द किया गया है। यह हमें आनेवाले खतरों से खुद को बचाने के लिए आवश्यक और उपयोगी है। किसी भी तकनीक की तरह, दिमाग भी दोधारी होता है और हम पर हावी होने के लिये अपने दायरे को पार कर जाता है। यह अनिवार्य रूप से अहंकार का जन्म स्थान है। यह अचूक उपाय हमें सिखाता है कि विभाजन को कम करने के लिए दिमाग को गुलाम बनाएं (काबू में रखें) ताकि सामंजस्य या एकता प्रकट हो। यह ध्यान देने योग्य है कि हमारे शरीर सहित कोई भी जटिल भौतिक अस्तित्व इस सामंजस्य के बिना जीवित नहीं रह सकता है।
जब हम इस अचूक उपाय का उपयोग करते हैं, तो हम दूसरों के लिए करुणा विकसित करते हैं और अपने बारे में जागरूकता बढ़ाते हैं। इसे महसूस करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि किसी ऐसे व्यक्ति के साथ शुरुआत करें जिसे हम किसी भी कारण से शत्रु मानते हैं और उस व्यक्ति को भगवान के रूप में देखें। निश्चित रूप से यह कठिन है क्योंकि कई अप्रिय यादें और भावनाएं उनसे जुड़ी होती हैं और समय के साथ वह नापसंदगी पिघलकर आनंद बन जाता है। वास्तव में ऐसी स्थितियां रही होंगी जहाँ हम सभी ने ऐसा किया होगा और हमें इसे बार-बार अभ्यास में लाने की आवश्यकता है।
गीता द्वारा दिए गए मार्ग में, स्वयं के बारे में जागरूकता और दूसरों के लिए करुणा अन्तरात्मा रुपी किनारे की ओर जाने के लिए नाव के दो चप्पू जैसे हैं।
एक बार जब हम इसे समझ लेते हैं, तो क्या हम भगवान श्रीकृष्ण को कोरोना महामारी में देख सकते हैं?
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