70. समय को एक मौका दें


एक फल विकसित होने और पकने के लिए अपने मूल पेड़ से पोषक तत्वों को अवशोषित करता है। फिर वह अपनी यात्रा शुरू करने के लिए पेड़ से अलग हो जाता है। मूल वृक्ष से मुक्ति की यात्रा की शुरुआत से अंत में स्वयं वृक्ष बनने तक विभिन्न क्रियाएं शामिल हैं। दूसरी ओर, एक अपरिपक्व फल को जनक वृक्ष से तब तक जुड़ा रहना चाहिए जब तक कि वह पक न जाए, यानी अपनी यात्रा स्वयं शुरू करने में वह सक्षम न हो जाये।

परन्तु, एक पके फल को अपरिपक्व फल को पेड़ छोडऩे का लालच नहीं देना चाहिए, क्योंकि यह अभी तक एक स्वतंत्र यात्रा शुरू करने के लिए तैयार नहीं है। यदि यह मूल वृक्ष से आवश्यक पोषण प्राप्त करने में समय नहीं लगाता है तो यह नष्ट हो जाएगा। इसलिए श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘परमात्मा के स्वरुप में अटल स्थित हुए ज्ञानी पुरुष को चाहिए कि वह शास्त्रविहित कर्मों में आसक्तिवाले अज्ञानियों की बुद्धि में भ्रम अर्थात कर्मों में अश्रद्धा उत्पन्न न करे। किन्तु स्वयं शास्त्रविहित समस्त कर्म भलीभांति करता हुआ उनसे भी वैसे ही करवाए’’ (3.26)

यह श्रीकृष्ण ने जो कहा उसका विस्तार है (3.6), उन व्यक्तियों के बारे में जो क्रिया के साधनों को बलपूर्वक नियंत्रित करते हैं, लेकिन जिनका मन अभी भी इंद्रिय विषयों के विचारों के चारों ओर घूमता है। वह उन्हें दम्भी कहते हैं जो स्वयं को बहका रहे हैं और यह उस अज्ञानी की स्थिति से अलग नहीं होगा जिसके कार्यों को एक बुद्धिमान व्यक्ति द्वारा जबरन रोक दिया गया था।

सौ छात्रों की एक कक्षा में, प्रत्येक छात्र एक ही पाठ को अपनी समझ और मन की स्थिति के आधार पर अलग-अलग तरीके से समझता है। इसी प्रकार, एक संन्यासी जो जीवन में प्रेरित कार्यों की निरर्थकता को महसूस करता है, उसे ब्रह्मचारी को पारिवारिक जीवन से दूर रहने के लिए प्रोत्साहित नहीं करना चाहिए। क्योंकि ब्रह्मचारी अपने पारिवारिक जीवन से ही प्रेरित कार्यों की निरर्थकता को बेहतर ढंग से सीख सकता है। इसके अलावा और कोई रास्ता नहीं है।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन में गीता सीखने की भूख के जगने का इंतजार किया। तब तक, श्रीकृष्ण ने उन्हें सांसारिक कार्यों को करने दिया, और जीवन में सुख-दु:ख से गुजरने दिया। उपयुक्त क्षण आने पर गीता का उपदेश दिया। इस प्रकार, सीखना तब होता है जब इसके लिए एक आंतरिक भूख होती है, जहां प्रत्येक चीज जिसे हम देखते हैं और जीवन की प्रत्येक स्थिति जिसका हम सामना करते हैं, वह शिक्षक बन सकती है।

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