146. फोटॉन की सवारी करना

 



ऐसा कहा जाता है कि हर सुबह हमारा नया जन्म होता है जो कि ‘समय’ की दृष्टि से एक पुनर्जन्म है। इस संबंध में, श्रीकृष्ण कहते हैं कि ब्रह्मा (निर्माता) का भी एक दिन और रात है लेकिन एक अलग समय पैमाने का (8.17)। ‘‘सम्पूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त में ही लीन हो जाते हैं’’ (8.18)। यह निरपवाद रूप से एक चक्रीय प्रक्रिया है (8.19)। समय के प्रभाव में सबकुछ चक्रीय है।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘उस अव्यक्त से भी अति परे दूसरा अर्थात विलक्षण जो सनातन अव्यक्त भाव है, वह परम दिव्य पुरुष सब भूतों के नष्ट होने पर भी नष्ट नहीं होता’’ (8.20)। इस श्लोक को समझने के लिए एक बीज सबसे अच्छा उदाहरण है। बीज के भीतर एक अव्यक्त वृक्ष छिपा होता है और बीज-वृक्ष-बीज का चक्र चलता रहता है। लेकिन, इन दोनों से परे एक रचनात्मक शक्ति है जो इस चक्र को संभव बनाती है और श्रीकृष्ण इस रचनात्मक शक्ति की ओर इशारा कर रहे हैं जो समय से परे है।

समय से परे किसी चीज को समझना दिमाग के लिए एक मुश्किल काम है। वैज्ञानिक रूप से, सापेक्षता का सिद्धांत (ञ्जद्धद्गशह्म्4 शद्घ क्रद्गद्यड्डह्लद्ब1द्बह्ल4) इस जटिल मुद्दे को समझने में हमारी मदद करने के करीब है। यह स्वयं सिद्ध मानता है कि यदि हम प्रकाश की गति से यात्रा करने वाले फोटॉन पर सवारी कर सकते हैं, तो समय रुक जाता है। एक फोटॉन जिसने अपनी यात्रा शुरू की (पृथ्वी पर हमारी घड़ी के अनुसार लगभग एक लाख साल पहले) उसके लिए समय रुका हुआ है और फोटॉन के लिए समय का कोई स्थान नहीं है।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘जिस परमात्मा के अंतर्गत सर्वभूत हैं और जिस परमात्मा से यह समस्त जगत परिपूर्ण है वह सनातन अव्यक्त परम पुरुष तो अनन्य भक्तियोग से ही प्राप्त होने योग्य है’’ (8.22) और यह अंतिम लक्ष्य है जो मेरा सर्वोच्च निवास है, जहां पहुँचने के बाद कोई वापसी नहीं होती (8.21)। वापस न आना यानी मोक्ष इंगित करता है कि व्यक्ति समय के चक्र (जन्म-पुनर्जन्म) से बाहर है। यह सर्वोच्च के प्रति समर्पण के माध्यम से प्राप्त होता है जो सभी के लिए बिना शर्त प्यार है।


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