162. छठी इंद्रिय
श्रीकृष्ण कहते हैं , " आदित्यों में मैं विष्णु हूँ ; मैं चमकता हुआ सूर्य और चंद्रमा हूँ (10.21) । वेदों में , मैं सामवेद हूँ ; मैं वसुव ( इंद्र ) हूँ ; इंद्रियों में मैं मन हूँ ; प्राणियों में मैं चेतना हूँ (10.22) । रुद्रों में मैं शंकर हूँ ; मैं कुबेर हूँ (10.23) । मैं बृहस्पति हूँ ; समस्त जलाशयों में मैं समुद्र हूँ ” (10.24) । श्रीकृष्ण ने पहले कहा था कि वह सभी प्राणियों के हृदय में स्थित आत्मा है (10.20) और साथ ही एक पदानुक्रम दिया था कि आत्मा बुद्धि से श्रेष्ठ है ; बुद्धि मन से श्रेष्ठ है ; मन इंद्रियों से श्रेष्ठ है (3.42) । लेकिन यहां श्रीकृष्ण कहते हैं कि वह इंद्रियों में मन हैं जिसे समझने की जरूरत है। ऐसा कहा जाता है कि ' समूचा , अपने भागों के जोड़ से बड़ा होता है ' । इसकी झलक ' एक और एक ग्यारह ' की कहावत में भी मिलती है। कुल मिलाकर दो कान ध्वनि की दिशा का बोध करा सकते हैं ; दो आंखें मिलकर गहराई का बोध पैदा कर स...