116. अध्यात्म का सहज मार्ग

आध्यात्मिक पथ के बारे में आम धारणा यह है कि इसका अनुसरण करना कठिन है। श्रीकृष्ण ने पहले ऐसे लोगों को आश्वासन दिया था कि छोटे प्रयास कर्म योग में बड़ा लाभ पहुंचाते हैं ( 2.40) । वे इसे और सरल बनाकर समझाते हैं जब वे कहते हैं , ‘‘ दु:खों का नाश करने वाला योग तो यथायोग्य आहार-विहार , कर्मों में यथायोग्य चेष्टा और यथायोग्य सोने तथा जागने वाले का ही सिद्ध होता है’’ ( 6.17) । योग या आध्यात्मिक मार्ग उतना ही सरल है जितना भूख लगने पर भोजन करना ; समय पर काम करना ; समय पर सोना और थक जाने पर आराम करना। इसके अलावा बाकी सब सिर्फ बातें हैं जो हम खुद को और दूसरों को बताते हैं। एक बच्चे को एक बूढ़े व्यक्ति की तुलना में अधिक नींद की जरूरत होती है। भोजन के संबंध में हमारी आवश्यकताएं दिन की शारीरिक गतिविधियों के आधार पर भिन्न हो सकती हैं , यह दर्शाता है कि ‘यथायोग्य’ का अर्थ वर्तमान क्षण में जागरूक होना है। इसे पहले करने योग्य कर्म ( 6.1) या नियत कर्म ( 3.8) के रूप में संदर्भित किया गया था। हमारा दिमाग अपनी कल्पना से साधारण तथ्यों को बढ़ाचढ़ाकर इनके इर्द-गिर्द पेचीदा कहानियों को बुनता है। ये कहानि...