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Showing posts from May, 2025

176. मित्र से परमात्मा तक

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  विभिन्न संस्कृतियाँ परमात्मा का वर्णन अलग - अलग तरीके से करती हैं। हमारी आस्था के आधार पर परमात्मा का स्वरूप बदलता रहता है। अगर परमात्मा हमारे सामने किसी अलग आकार या रूप में प्रकट होते हैं तो उन्हें पहचान पाना कठिन होगा। इसी तरह अर्जुन शुरू से श्रीकृष्ण के साथ मित्र की तरह व्यवहार कर रहे थे। जब तक अर्जुन ने विश्वरूप को नहीं देखा तब तक वह नहीं पहचान सके कि श्रीकृष्ण परमात्मा हैं। वह क्षमा मांगते हुए कहते हैं कि " आपको अपना मित्र मानते हुए मैंने धृष्टतापूर्वक आपको हे कृष्ण , हे यादव , हे प्रिय मित्र कहकर संबोधित किया क्योंकि मुझे आपकी महिमा का ज्ञान नहीं था। उपेक्षित भाव से और प्रेमवश होकर यदि उपहास करते हुए मैंने कई बार खेलते हुए , विश्राम करते हुए , बैठते हुए , खाते हुए , अकेले में या अन्य लोगों के समक्ष आपका कभी अनादर किया हो तो उन सब अपराधों के लिए मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ " (11.41-11.42) ।   अर्जुन की तरह हमारे साथ ...

175. निमित्त-मात्र की विशेषताएं

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  श्रीकृष्ण अर्जुन को भविष्य की एक झलक दिखाते हैं जहां योद्धा मौत के मुंह में प्रवेश कर रहे हैं और कहते हैं कि अर्जुन केवल एक निमित्तमात्र है। श्रीकृष्ण आगे स्पष्ट करते हैं कि अर्जुन के बिना भी , उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहेगा और इसलिए उसे तनाव मुक्त होकर लड़ना चाहिए।   ' इंद्रिय केंद्रित ' अहंकार से ' परमात्मा केंद्रित ' निमित्तमात्र तक की यात्रा कठिन है। स्वाभाविक प्रश्न हैं कि इसे कैसे हासिल किया जाए और इसकी प्रगति के सूचक क्या हैं।   निमित्तमात्र एक आंतरिक अवस्था है न कि कोई कौशल जिसमें महारत हासिल की जा सके। इसे प्राप्त करने का एक आसान तरीका मृत्यु को सदैव याद रखना है , जिसे ' मेमेंटो मोरी ' कहा जाता है। दूसरे , दर्दनाक ( असहाय और दयनीय ) परिस्थितियां हमें निमित्तमात्र की झलक तुरंत दे सकती हैं। जागरूकता के साथ सुखद परिस्थितियां भी हमें लंबे समय तक चलने वाली निमित्तमात्र की झलक दे सकती हैं।   श्रीकृष्ण ने पहले सं...