175. निमित्त-मात्र की विशेषताएं


 

श्रीकृष्ण अर्जुन को भविष्य की एक झलक दिखाते हैं जहां योद्धा मौत के मुंह में प्रवेश कर रहे हैं और कहते हैं कि अर्जुन केवल एक निमित्तमात्र है। श्रीकृष्ण आगे स्पष्ट करते हैं कि अर्जुन के बिना भी, उनमें से कोई भी जीवित नहीं रहेगा और इसलिए उसे तनाव मुक्त होकर लड़ना चाहिए।

 'इंद्रिय केंद्रित' अहंकार से 'परमात्मा केंद्रित' निमित्तमात्र तक की यात्रा कठिन है। स्वाभाविक प्रश्न हैं कि इसे कैसे हासिल किया जाए और इसकी प्रगति के सूचक क्या हैं।

 निमित्तमात्र एक आंतरिक अवस्था है कि कोई कौशल जिसमें महारत हासिल की जा सके। इसे प्राप्त करने का एक आसान तरीका मृत्यु को सदैव याद रखना है, जिसे 'मेमेंटो मोरी' कहा जाता है। दूसरे, दर्दनाक (असहाय और दयनीय) परिस्थितियां हमें निमित्तमात्र की झलक तुरंत दे सकती हैं। जागरूकता के साथ सुखद परिस्थितियां भी हमें लंबे समय तक चलने वाली निमित्तमात्र की झलक दे सकती हैं।

 श्रीकृष्ण ने पहले संकेत दिया था कि वह 'तेज' हैं (10.41) और यह एहसास करना है कि निमित्तमात्र की आंतरिक स्थिति बाहरी दुनिया में तेज के रूप में प्रकट होती है। यह स्थिति हमें पूर्वाग्रहों, विश्वास प्रणालियों या निर्णयों के बिना चीजों को स्पष्ट रूप से देखने और अतीत के बोझ या भविष्य अथवा दूसरों से अपेक्षाओं के बिना जीने में मदद करती है।

 'क्या हमारी अनुपस्थिति से इस संसार पर कोई फर्क पड़ेगा'? यदि हम इस प्रश्न का उत्तर बार-बार, स्पष्ट रूप से और दृढ़ता से 'नहीं' में पाते हैं, तो हम निश्चित रूप से निमित्तमात्र की ओर बढ़ रहे हैं।

 यह इस बारे में नहीं है कि हम क्या करते हैं या हम क्या चुनते हैं, भले ही वह कितना ही महान क्यों प्रतीत हो। यह इस बारे में है कि हमारे द्वारा किए गए कर्म या चुनाव कितना कर्मबंधन उत्पन्न करते हैं। यह कर्मबंधन निमित्त-मात्र की ओर हमारी यात्रा में प्रगति को निर्धारित करता है।

 

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