76. वासना से सावधान रहें


अर्जुन पूछते हैं, ‘‘तो फिर यह मनुष्य स्वयं न चाहता हुआ भी जबरन से लगाए हुए की भांति किससे प्रेरित होकर पाप का आचरण करता है’’ (3.36)? यह सबसे आम सवाल है जो जागरूकता की पहली किरण से उठता है।

श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘रजोगुण से उत्पन्न हुआ यह काम ही क्रोध में परिवर्तित होता है, यह बहुत भोगों से कभी न अघानेवाला और बड़ा पापी है, इसको ही तू इस विषय में वैरी जान’’ (3.37)

कर्म के प्रति आसक्ति रजोगुण की पहचान है, जो इच्छा के कारण होती है। जैसा कि एक कार के मामले में होता है, गति रजो गुण से पैदा हुआ एक लक्षण है और इसे प्राप्त करने के लिए त्वरक (एक्सेलरेटर) एक उपकरण है। इसी प्रकार धीमा होना या जड़ता तमस का स्वभाव है और इसके लिए ब्रेक एक यंत्र है। चालक सत्व गुण का प्रतिनिधित्व करता है जो एक सुगम और सुरक्षित सवारी के लिए त्वरण और ब्रेकिंग में संतुलन बनाए रखता है। स्पीडोमीटर जागरूकता का एक उपकरण है। यदि संतुलन बिगड़ गया तो दुर्घटना निश्चित है।

काम-वासना (हवस) भी हमारे जीवन में संतुलन खोने के अलावा और कुछ नहीं है। हम खुशी प्राप्त करने के लिए इतनी ऊर्जा का निवेश करते हैं जैसे किसी चीज या किसी को पाने या शक्ति और प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए। इन इच्छाओं को ऊर्जा देते समय हम इनके परिणामों से पूरी तरह अनजान होते हैं। जब यह हमारे ऊपर हावी हो जाता है तो हमारे पास कोई नियंत्रण नहीं रहता। क्रोध अतृप्त इच्छाओं का स्वाभाविक परिणाम है।

श्लोक कहता है कि इच्छाओं को तृप्त नहीं किया जा सकता, और जितना अधिक हम इसे संतुष्ट करने का प्रयास करते हैं, यह उतनी ही बढ़ती हैं। अमीर अधिक धन चाहता है और शक्ति वाला, पूर्ण शक्ति चाहता है। तरीका यह है कि उन्हें न तो दबाना है और न ही संतुष्ट करना है। श्रीकृष्ण कहते हैं कि उनसे सावधान रहें, तब जागरूक होवें जब हम काम-वासना या भय से जकड़े हुए हैं और यह जागरूकता ही हमें उनके चंगुल से मुक्त कर देगी।

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