82. जैसी करनी, वैसी भरनी

 


भौतिक इकाइयां पूर्वानुमेय व्यवहार और गुणों द्वारा नियंत्रित होती हैं। श्रीकृष्ण सर्वशक्तिशाली अव्यक्त और प्रकट के बीच संबंधों में अंतर्दृष्टि देते हुए कहते हैं, ‘‘जो भक्त मुझे जिस प्रकार भजते हैं, मैं भी उनको उसी प्रकार भजता हूँ; क्योंकि सभी मनुष्य सब प्रकार से मेरे ही मार्ग का अनुसरण करते हैं’’ (4.11)

सबसे पहले, यह भगवान की ओर से एक आश्वासन है कि हम किसी भी मार्ग का अनुसरण करते हैं और भले ही ये मार्ग कितने ही विरोधाभासी हों, वे सभी अव्यक्त परमात्मा के मार्ग हैं। दूसरे, भगवान एक बहुआयामी दर्पण की तरह प्रतिक्रिया करते हैं जो हमारी भावनाओं, विचारों और कार्यों को प्रतिबिंबित और प्रतिध्वनित करते हैं। तीसरा, जब हम एक बीज बोते हैं, तो उसे एक पेड़ की पूर्ण क्षमता प्राप्त करने में समय लगता है और यह समय अंतराल हमें परमात्मा के प्रतिध्वनि के इस सिद्धांत को पूरी तरह से समझने से रोकता है।

अगर हम अपने जीवन को बिना शर्त प्यार और श्रद्धा से भर देते हैं, तो प्यार और श्रद्धा अनिवार्य रूप से हमारे जीवन को आनंदमय बनाने के लिए वापस आ जाती है। यदि हम क्रोध, भय, घृणा, क्रूरता या ईष्र्या बोते हैं तो वही हमारे जीवन को दयनीय बनाते हुए वापस परोसा जाएगा। इनके अनगिनत उदाहरण हैं और ध्यान देने वाली बात यह है कि बुवाई और कटाई के बीच के समय के अंतराल के कारण हम इन दोनों के बीच के पक्के संबंध को भूल जाते हैं।

यह श्लोक सूक्ष्म और स्थूल दोनों स्तरों पर कार्य करता है। अपने बड़े सपनों को साकार करने की तलाश में, हमें कभी भी छोटी-छोटी जीत से चूकना नहीं चाहिए। यह जीत हमें अनुभवात्मक स्तर पर सर्वोच्च चेतना का एहसास करने में मदद करती है।

श्रीकृष्ण आगे कहते हैं कि, ‘‘इस मनुष्य लोक में कर्मों के फल को चाहने वाले लोग देवताओं का पूजन किया करते हैं; क्योंकि उनको कर्मों से उत्पन्न होने वाली सिद्धि शीघ्र मिल जाती है’’ (4.12)

देवता और कुछ नहीं बल्कि परमात्मा की एक झलक हैं। परमात्मा को पाने के लिए हमें अहंकार को पूरी तरह छोडऩा पड़ता है, लेकिन इसमें समय लगता है। देवता परमात्मा को साकार करने की यात्रा में मध्य बिंदु हैं, जहां हमारा अहंकार अभी भी बाकी है।

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