83. असत्य सत्य पर पनपता है

 


जैसा कि हम जानते हैं, यह संसार सत्य और असत्य दोनों से मिलकर बना है। सावधानीपूर्वक परीक्षण करने से पता चलता है कि, या तो हमारी परिस्थितियों के कारण या हमारी इंद्रियों और मन की सीमाओं के कारण, असत्य और कुछ नहीं बल्कि सत्य की गलत व्याख्या है। प्रसिद्ध रस्सी और सांप सादृश्य में, रस्सी सत्य है और सांप असत्य है जो रस्सी के बिना मौजूद नहीं हो सकता। लेकिन, जब तक यह बोध नहीं हो जाता, तब तक हमारे सभी विचार और कार्य असत्य पर आधारित होंगे। कुछ ऐसे झूठ इस संसार में पीढिय़ों तक जारी रहने की सम्भावना है।

इसी तरह, यदि हम किसी भी टेकनोलॉजी को ‘सत्य’ मानते हैं, तो उसका हानिकारक प्रयोग ‘असत्य’ है। लाउडस्पीकर का इस्तेमाल अच्छाई का प्रचार करने या इसके विपरीत भोले-भाले लोगों को हिंसा के लिए उकसाने के लिए भी किया जा सकता है। इसी तरह, आज का सोशल मीडिया असत्य बन जाता है, जब इसका इस्तेमाल द्वेषपूर्ण ढंग से किया जाता है।

श्लोक 4.13 को समझने के लिए सत्य और असत्य की यह समझ आवश्यक और उपयोगी है जहां श्रीकृष्ण कहते हैं, मैंने गुणों और कर्मों के भेद के आधार पर चार वर्ण बनाए हैं, लेकिन मुझे अकर्ता और अविनाशी के रूप में जानो।

श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि ऐसा विभाजन गुणों पर आधारित है लेकिन जन्म पर नहीं और श्रेणीबद्ध नहीं हैं अर्थात कोई ऊंचा और कोई नीचा नहीं है। तीन गुण हम सभी में अलग-अलग अनुपात में मौजूद हैं और ये कर्म के सन्दर्भ में चार व्यापक विभाजनों को जन्म देते हैं। जब हम अपने चारों ओर देखते हैं, तो हम पाते हैं कि कुछ लोग ज्ञान और अनुसंधान उन्मुख होते हैं; कुछ राजनीति और प्रशासन में; कुछ कृषि और व्यवसायों में; और कुछ सेवा और नौकरी में हैं। यह विभाजन भौतिक जगत में आइनस्टाइन, अलेक्जेंडर, पिकासो और मदर टेरेसा जैसे विभिन्न विचार लाता है, इंद्रधनुष में रंगों की तरह।

जबकि सच्चाई यह है कि गुण और कर्म के कारण मनुष्य चार प्रकार के होते हैं, और यह असत्य है कि विभाजन श्रेणीबद्ध है और जन्म पर आधारित है।

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