85. कर्म, अकर्म और विकर्म


एक्ट ऑफ कमीशन एंड ओमिशन’ यानी कृतकार्य या भूलचूक आमतौर पर कानूनी शब्दावली में इस्तेमाल किया जाने वाला एक वाक्यांश है। उचित समय पर ब्रेक लगाने में विफल रहने वाले चालक से चूक हुई जिसके परिणामस्वरूप दुर्घटना हुई। चूक या अकर्म का यह कार्य दुर्घटना के कर्म की ओर ले जाता है।

उदाहरण के लिये, कोई भी क्रिया करते समय, हम अपने लिए उपलब्ध कई अलग-अलग विकल्पों में से किसी एक का चुनाव करते हैं। जब हम इनमें से किसी एक विकल्प का प्रयोग करके कार्य करते हैं, तो अन्य सभी विकल्प हमारे लिए अकर्म बन जाते हैं, जिससे यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रत्येक कर्म में अकर्म छिपा होता है।

ये उदाहरण हमें श्रीकृष्ण के गहन कथन को समझने में मदद करते हैं कि ‘‘जो मनुष्य कर्म में अकर्म देखता है और जो अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और वह योगी समस्त कर्मों को करने वाला है’’ (4.18)

श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘‘कर्म क्या है और अकर्म क्या है?- इस प्रकार इसका निर्णय करने में बुद्धिमान पुरुष भी मोहित हो जाते हैं’’ (4.16)। वह आगे कहते हैं कि, ‘‘कर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए और अकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए तथा विकर्म का स्वरूप भी जानना चाहिए; क्योंकि कर्म की गति गहन है’’ (4.17)

एक चिंतनशील व्यक्ति ने एक बार एक जानवर को जंगल में भागते हुए देखा। क्षण भर बाद, एक कसाई आया और उससे पूछा कि क्या उसने जानवर को देखा है। व्यक्ति दुविधा में पड़ गया, क्योंकि सच्चाई के परिणामस्वरूप पशु की मृत्यु हो जाएगी, जबकि झूठ बोलना अनैतिक है। यदि हम सभी संस्कृतियों और धर्मों के सभी निषिद्ध कार्यों को जोड़ दें, तो जीना असंभव हो जाएगा। इसलिए, श्रीकृष्ण इंगित करते हैं कि ये मुद्दे जटिल हैं और बुद्धिमान भी उलझ जाते हैं।

जीवन हमारे सामने कई ऐसी स्थितियां प्रस्तुत करता है जहां आगे कुआँ और पीछे खाई होती है। जिस भौतिक धरातल में हम सभी रहते हैं उस तल में कोई आसान उत्तर नहीं होता है। जब हम कर्ता से साक्षी की ओर बढ़ते हैं और चुनाव रहित जागरूकता के साथ जीते हैं, तभी स्पष्टता आती है।

Comments

Popular posts from this blog

53. इंद्रिय विषयों की लालसा को छोडऩा

17. चार प्रकार के ‘भक्त’

58. इच्छाएं और जीवन की चार अवस्थाएँ