107. आनन्द के लिये ध्यान


पीनियल ग्रंथि एक मटर के आकार का, पाइन शंकु के प्रतिरूप का अंग है जो मस्तिष्क के केंद्र में, सीधे दो भृकुटि के बीच में स्थित होता है। शारीरिक रूप से यह न्यूरोट्रांसमीटर मेलाटोनिन और सेरोटोनिन का उत्पादन करता है जो क्रमश: नींद के साथ-साथ मनोदशा के लिए जिम्मेदार होते हैं। इसे तीसरी आंख के रूप में भी जाना जाता है क्योंकि इसमें सामान्य आंख की तरह फोटोरिसेप्टर होते हैं।

सभी संस्कृतियों ने इसे विभिन्न तरीकों से वर्णित किया है; जैसे आत्मा के आसन; आध्यात्मिक ज्ञान के लिए जिम्मेदार; एक छठी इंद्रिय जो पांचों इंद्रियों से परे देख सकती है; आध्यात्मिक जागृति का प्रतीक; भौतिक और आध्यात्मिक दुनिया के बीच संबंध। भारतीय सन्दर्भ में, भृकुटि के बीच की जगह को आज्ञा चक्र कहा जाता है जो पीनियल ग्रंथि का प्रतिनिधित्व करता है।

यह पृष्ठभूमि हमें इंद्रियों और मन को नियंत्रित करने के लिए श्रीकृष्ण की विधि को समझने में मदद करेगी, जब वे कहते हैं, ‘‘बाहर के विषय भोगों को न चिंतन करता हुआ बाहर ही निकालकर और नेत्रों की दृष्टि को भृकुटि के बीच में स्थित करके तथा नासिका में विचरने वाले प्राण और अपानवायु को सम करके, जिसकी इन्द्रियाँ, मन और बुद्धि जीती हुई हैं, ऐसा जो मोक्षपरायण मुनि इच्छा, भय और क्रोध से रहित हो गया है वह सदा मुक्त ही है’’ (5.27 एवं 5.28)। यह भगवान द्वारा अर्जुन को अपनी इंद्रियों, मन और बुद्धि को नियंत्रित करने में मदद करने के लिए दी गई एक विधि या तकनीक है।

विज्ञान भैरव तंत्र’ में भगवान शिव द्वारा दी गई 112 ऐसी विधियां हैं और ऐसी ही एक तकनीक कहती है, भौंहों के बीच एक बिंदु पर बिना विचारों के ध्यान लगाओ। तब दिव्य ऊर्जा टूटकर निकलती है और सिर के मुकुट तक ऊपर उठती है और तुरंत व्यक्ति को पूरी तरह से अपने परमानंद से भर देती है।

घायल क्षेत्रों पर हमारा ध्यान आकर्षित करने के लिए दर्द एक स्वचालित उपकरण है और यह हमें जीवित रहने में मदद करता है। इसी तरह, पीनियल ग्रंथि को सक्रिय करने के लिए भृकुटि के बीच के क्षेत्र पर सचेत ध्यान लाना है और यह सक्रियता हमें किसी भी इंद्रिय की मदद के बिना आंतरिक परमानंद से भर देगी।

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