रामायण की कथा के अनुसार,
राजा बाली अजेय था क्योंकि उसमें किसी भी मुकाबले में अपने दुश्मन की आधी ताकत छीन लेने की क्षमता थी। यहां तक कि भगवान राम को भी उसे पेड़ के पीछे छुपकर मारना पड़ा। यह दर्शाता है कि बाली एक अनूठा शिक्षार्थी था जो लोगों और परिस्थितियों से कौशल और ज्ञान प्राप्त करता था क्योंकि वह दूसरों में शत्रुता के बजाय परमात्मा को देखता था। जब भी हम शत्रुता करते हैं तो घृणा पैदा होती है जो परमात्मा को देखने की क्षमता को हर लेती है।
श्रीकृष्ण ने पहले कहा था कि सारा संसार उन्हीं से व्याप्त है (9.4) जो इंगित करता है कि प्रत्येक व्यक्ति या स्थिति परमात्मा का एक रूप है। इस मूल तथ्य के बारे में हमारी अज्ञानता के कारण हम 'बाली' की तरह सीख नहीं पाते। इस संबंध में श्रीकृष्ण कहते हैं,
"अज्ञानी, सभी प्राणियों के निर्माता के रूप में मेरी पारलौकिक प्रकृति से अनजान,
मानव रूप में मेरी उपस्थिति को भी नकारते हैं" (9.11)। यह एक गहरा अहसास है कि वह हमारे आस-पास के हर व्यक्ति में व्याप्त हैं,
चाहे हम उन लोगों को पसंद करें या नहीं। यह कर्मकांडी होने या भगवान की स्तुति करने के बारे में नहीं है।
अज्ञानी से महात्मा बनना एक लंबी यात्रा है जिसमें दृढ़ संकल्प के साथ-साथ नियमित अभ्यास की आवश्यकता होती है (6.23)। अज्ञानता के बारे में श्रीकृष्ण कहते हैं, "वे व्यर्थ आशा,
व्यर्थ कर्म, व्यर्थ ज्ञान वाले विकृत चित्त अज्ञानीजन, राक्षसी,
आसुरी और मोहिनी प्रकृति को ही धारण किए रहते हैं" (9.12)।
महात्मा के बारे में श्रीकृष्ण कहते हैं कि, "मेरी दैवी प्रकृति के आश्रित महात्माजन मुझको सब भूतों का सनातन कारण और नाशरहित अक्षरस्वरूप जानकर अनन्य मन से युक्त होकर निरंतर भजते हैं (9.13)। वे दृढ़ निश्चय वाले भक्तजन निरन्तर मेरे नाम और गुणों का कीर्तन करते हुए तथा मेरी प्राप्ति के लिए यत्न करते हुए और मुझको बार-बार प्रणाम करते हुए सदा मेरे ध्यान में युक्त होकर अनन्य प्रेम से मेरी उपासना करते हैं (9.14)। दूसरे मनुष्य सभी दिशाओं में स्थित मुझ विराटस्वरूप परमेश्वर की अनेक प्रकार से उपासना करते हैं" (9.15)।
सर्वव्यापी परमात्मा को प्रणाम करना ही कुंजी है, चाहे वह हमारे आस पास किसी भी रूप में हों। यह हमें घृणा को त्यागकर कर्म करने में मदद करेगा जिससे हर स्थिति में सर्वश्रेष्ठ प्राप्त कर पाएंगे
(5.3)।
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