3. यह यहाँ है और अभी है


 

गीता इस बारे में है कि हम क्या हैं। यह सत्य को जानने के अलावा सच्चा होने जैसा है और ऐसा तब होता है जब हम वर्तमान क्षण में रहते हैं।

अर्जुन की अंतर्निहित दुविधा यह है कि अगर वह राज्य के लिए अपने मित्रों, रिश्तेदारों, बुजुर्गों और शिक्षकों का वध कर देता है तो दुनिया की नजर में उसकी छवि का क्या होगा। यह बहुत तर्कसंगत प्रतीत होता है। अगर किसी को गीता के अनुसार जीवन जीना है तो उसे इस पहली बाधा को पार करना होगा।

अर्जुन की असली दुविधा उसके भविष्य को लेकर है, जबकि श्रीकृष्ण कहते हैं कि हमें कर्म करने का अधिकार है लेकिन कर्मफल पर कोई अधिकार नहीं है। क्योंकि कर्म वर्तमान में होता है और कर्मफल भविष्य में आता है।

अर्जुन की तरह, हमारी प्रवृत्ति कर्मफल की प्राप्ति के लिए कार्य करती है। कभी-कभी आधुनिक जीवन हमें यह आभास दिलाता है कि भविष्य के परिणामों को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन वास्तव में भविष्य इतनी सारी संभावनाओं का मेल है जिस पर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है।

हमारा अहंकार हमारे अतीत पर निर्भर होता है और वर्तमान पर भविष्य को प्रक्षेपित करता है, जिसकी वजह से हम वर्तमान में रह नहीं पाते हैं।

अंतरिक्ष के विषय में; आकाशगंगाओं, तारों और ग्रहों से युक्त पूरे ब्रह्मांड की विशेषता परिक्रमा है। यह एक स्थिर चाक और एक घूमने वाले पहिये की तरह है। चाक कभी हिलता नहीं है और इस चाक के बिना पहिए का घूमना संभव नहीं है। हर तूफान का एक शांत केंद्र होता है जिसके बिना कोई भी तूफान गति नहीं पकड़ सकता। तूफान के केंद्र से जितनी दूरी होगी, उतनी ही अधिक अशांति होगी।

हममें भी एक शांत केंद्र है जो और कुछ नहीं बल्कि हमारी अन्तरात्मा है और अशांत जीवन, इसके चारों ओर घूमता है। अर्जुन की अशांति उसकी छवि को लेकर है। अर्जुन की तरह हम भी दूसरों की आँखों में देखकर अपने बारे में छवि तैयार करते हैं।

इसलिये गीता कहती है कि हमें वर्तमान में जीना चाहिए और अन्तरात्मा के साथ अपने आप को जोडक़र रखना चाहिए।

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