5. ज्ञान, कर्म और भक्ति योग
गीता लोगों को उनके दृष्टिकोण के आधार पर भिन्न दिखाई देती है।
गीता में तीन अलग-अलग मार्ग बताए गए हैं - कर्मयोग, सांख्ययोग और भक्तियोग। मनोकेन्द्रित व्यक्ति के लिए कर्मयोग आदर्श है। सांख्ययोग बुद्धि के लिए है और भक्तियोग हृदय के लिए है।
आज की दुनिया में, अधिकतर व्यक्ति मनोकेन्द्रित की श्रेणी में आते हैं। यह इस विश्वास पर आधारित है कि हम जंजीरों से बंधे हुए हैं और खुद को मुक्त करने के उद्देश्य से उन्हें तोडऩे के लिए कड़ी मेहनत करने की जरूरत है। इसलिये यह कर्मकेन्द्रित है। उनके साथ कोई भी बातचीत ‘अब मुझे क्या करना चाहिए’
के साथ खत्म होगी। यह मार्ग हमें निष्काम कर्म यानी बिना प्रेरणा के कर्म की ओर ले जाता है।
सांख्ययोग को ज्ञानयोग के रूप में भी जाना जाता है और यह जागरूकता या जानने के बारे में है। इसका प्रारंभिक बिंदु यह विश्वास है कि हम एक अंधेरे कमरे में हैं और अंधेरे को मिटाने के लिए अंधेरे में एक दीपक जलाना है क्योंकि कोई भी प्रयास या निष्क्रियता उस अंधेरे को दूर नहीं कर सकती है। यह मार्ग हमें चुनाव रहित जागरूकता का एहसास कराता है।
भक्तियोग समर्पण के बारे में है। भक्तियोग का अनुसरण करनेवाले स्वयं को एक लहर के रूप में देखते हैं, जिसका अस्तित्व महासागर है जो कि परमात्मा है, अर्थात सर्वोच्च है।
शुरुआत में इन तीनों रास्तों की भाषा और समझ काफी अलग होती है। यदि किसी मनोकेन्द्रित व्यक्ति को जागरूकता का मार्ग समझाया जाता है, तो वह जागरूकता के लिए कोई न कोई क्रिया खोजने की कोशिश करता है।
निश्चित रूप से, ये तीनों एक दूसरे से एकदम अलग रास्ते नहीं हैं बल्कि व्यक्ति इनके संयोजन का अनुभव करता रहता है। उदाहरण के लिए, जब कर्म और सांख्य मार्ग मिलते हैं तो हमें पता चलता है कि सभी कर्मों की अंतिम नियति एक मृगतृष्णा है और इसे करते समय एक नाटक में अभिनय की तरह कर्म से अनासक्त हो जाएगा।
जैसे पूरा ब्रह्मांड तीन कणों ‘इलेक्ट्रॉन’, ‘प्रोटॉन’
और ‘न्यूट्रॉन’
का संयोजन है; इसी तरह आध्यात्मिक दुनिया इन तीन रास्तों का एक संयोजन है।
श्रीकृष्ण कहते हैं, ये सभी रास्ते अहंकार मुक्त आत्म-साक्षात्कार कराने की क्षमता रखते हैं।
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