12. मन पर नियंत्रण
अर्जुन मन की तुलना वायु से करता है और जानना चाहता है कि इसे कैसे नियंत्रित किया जाए, ताकि यह संतुलन बनाए रखे। श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह निश्चित रूप से कठिन है लेकिन इसे वैराग्य के अभ्यास से प्राप्त किया जा सकता है।
इंद्रियों द्वारा जुटाई गयी जानकारी को सुरक्षित और असुरक्षित में आंकने के लिए दिमाग का विकास किया गया है और ऐसा करने के लिये दिमाग स्मृति (यादाश्त) का उपयोग करता है। इस क्षमता ने हमें क्रमिक विकास के दौरान जीवित रहने और समृद्ध होने में मदद की।
दिमाग की उसी क्षमता का उपयोग आंतरिक निर्णय के लिए भी किया जा सकता है, जिसे जागरूकता कहा जाता है। हम अपने विचारों और भावनाओं को अपने दिमाग में पुन: उपयोग करके उसकी फैसला लेने की क्षमता में वृद्धि ला सकते हैं। आज के आधुनिक युग में इसी तरह से फीडबैक का उपयोग कंप्यूटर के काम करने की क्षमता को बढ़ाने के लिए किया जा रहा है। भगवान श्रीकृष्ण इस आंतरिक शक्ति को अभ्यास के द्वारा विकसित करने का संकेत दे रहे हैं क्योंकि यह स्वाभाविक रूप से नहीं आती। यह दिमाग में नयी ताकत भरने जैसा है।
वैराग्य को समझना, उसके ध्रुवीय विपरीत ‘राग’
को समझकर आसान हो जाता है। मोटे तौर पर राग दुनिया में सौंदर्य, करियर और भौतिक संपत्ति जैसे सुख की प्राप्ति के लिए एक दौड़ है। द्वंद्व के सिद्धांत के अनुसार, हर राग का अन्त वैराग्य में होता है लेकिन हमारा ध्यान हमेशा राग पर होता है और हम वैराग्य को अनदेखा कर देते हैं।
स्टोइसिस्म जैसे कुछ दर्शन मृत्यु के वरण की वकालत करते हैं, जो वैराग्य का शिखर है। इसे ‘मेमेंटो मोरी’
कहा जाता है, यानी बार-बार मौत याद करना और अनुभव करना। इसके लिए वे कार्यस्थल या घर में एक प्रमुख स्थान पर मृत्यु की याद के रूप में कुछ स्मृति चिन्ह रखते हैं, ताकि मृत्यु पर लगातार ध्यान रहे। भारतीय दर्शन इसे श्मशान वैराग्य के रूप में संदर्भित करता है।
श्रीकृष्ण कहते हैं कि यदि आप वैराग्य को अभ्यास में लाते हैं तो यह मन को केंद्र में स्थिर कर देगा।
लॉकडाउन ने हमें वैराग्य के क्षणों की झलक दी। वैराग्य का एक छोटा सा भाग भी हमें शांति और आनंद प्रदान करने वाला संतुलित मन प्राप्त करने में मदद कर सकता है।
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