14. सत्व, तमो और रजो गुण
हम में से अधिकांश लोगों का मानना है कि हम अपने सभी कार्यों के कारक हैं और अपनी नियति के खुद जिम्मेदार हैं। गीता में, भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि कर्म प्रकृति जनित तीन गुणों के परस्पर प्रभाव से बनता है, न कि किसी कर्ता के कारण। प्रकृति से तीन गुण पैदा होते हैं और आत्मा को भौतिक शरीर के साथ बांधते हैं। हम में से प्रत्येक में तीन गुण; सत्व, रजो और तमो अलग-अलग अनुपात में मौजूद हैं। सत्व गुण ज्ञान के प्रति लगाव है; रजो गुण कर्म के प्रति आसक्ति है और तमस अज्ञानता और आलस की ओर ले जाता है।
जैसे ‘इलेक्ट्रॉन’, ‘प्रोटॉन’ और ‘न्यूट्रॉन’ का मेल दुनिया की हर वस्तु का उत्पादन करता है, उसी तरह तीनों गुणों का मेल हमारे स्वभाव और कार्यों के लिए जिम्मेदार है। हममें से प्रत्येक में एक गुण दूसरे गुणों पर हावी होने की प्रवृत्ति रखता है। वास्तव में, लोगों के बीच मेल मिलाप और कुछ भी नहीं बल्कि उनके गुणों के बीच मेल मिलाप है।
जिस तरह विद्युत चुंबकीय क्षेत्र में रखा गया चुंबक उसी क्षेत्र के साथ घूमता है। किसी गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र में वस्तुएँ आकर्षित होती हैं। ऐसे कई भौतिक और रासायनिक गुण हैं। इसी तरह कर्म किसी कर्ता से नहीं बल्कि गुणों के कारण होता है। भगवान श्रीकृष्ण भौतिक संसार में स्वचालितता यानी अपने आप होनेवाले कार्य की ओर इशारा करते हैं। यहां तक कि हमारा अपना भौतिक शरीर भी काफी स्वचालित रूप से कार्य करता है।
जबकि यह गुण और कर्म के बीच संबंधों की व्याख्या करने के लिए एक सुव्यवस्थित रूपरेखा प्रस्तुत कर रहा है पर इस सत्य की प्राप्ति और संक्रमण तब संभव होता है जब हम अपने जीवन के अनुभवों से महसूस करते हैं।
ज्ञान के इस मार्ग में अहंकार मुख्य बाधा है, जो हमें विश्वास दिलाता है कि हम कर्ता हैं, लेकिन वास्तव में इन तीनों गुणों का परस्पर मेल ही कर्म का निर्माण करता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्म-सुधार की यह जिम्मेदारी पूरी तरह से हमारे अपने कंधों पर आती है और कोई अन्य हमें मदद नहीं कर सकता है।
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