21. रचनात्मकता को नष्ट नहीं किया जा सकता

अंतरात्मा को समझने की खोज में दो तरह के ज्ञानियों ने मानवता का मार्गदर्शन किया है। एक सकारात्मक पक्ष से आता है और दूसरा नकारात्मक से, हालांकि दोनों सन्दर्भों में गंतव्य एक ही होता है। यात्रा के आरंभस्थल में भिन्नता है और हमारे मार्ग का चुनाव हमारी प्रकृति पर आधारित है।

सकारात्मक रूप से उन्मुख ‘उस’ का जो अविनाशी, शाश्वत, स्थिर और सभी में व्याप्त है को पूर्ण के रूप वर्णन करता है, जिसमें कुछ भी नहीं जोड़ा जा सकता है। ‘रचनात्मकता’ इसका एक रूपक है।

नकारात्मक रूप से उन्मुख ‘उस’ का जो अविनाशी, शाश्वत, स्थिर और सभी में व्याप्त है को शून्य के रूप वर्णन करता है, जिसमें से कुछ भी नहीं घटाया जा सकता है। ‘अंतरिक्ष’ इसका एक रूपक है।

गौर करने का विषय है कि ‘रचनात्मकता’ और ‘अंतरिक्ष’ (ह्यश्चड्डष्द्ग) दोनों ही सृजन/भौतिक अभिव्यक्ति करने में सक्षम हैं। सहज रूप से यह समझना आसान है कि रचनात्मकता से सृजन होता है।

दूसरी ओर, विज्ञान इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि ब्रह्मांड शून्यता से बना है और अंतरिक्ष में इस ब्रह्मांड को अस्तित्व में लाने की क्षमता है। सबसे छोटे परमाणु से लेकर शक्तिशाली ब्रह्मांड तक अंतरिक्ष सर्वव्यापी है।
प्रसिद्ध श्लोक (2.23) में श्रीकृष्ण कहते हैं कि आत्मा को आग से नहीं जलाया जा सकता; हथियार इसे काट नहीं सकते; पानी इसे घुला नहीं सकता;  हवा इसे सुखा नहीं सकती।

क्या कोई हथियार अंतरिक्ष या रचनात्मकता को नष्ट कर सकता है? बिलकुल भी नहीं। अधिक से अधिक यह रचनात्मकता की भौतिक अभिव्यक्ति को रूपांतरित कर सकता है। इसी तरह, आग न तो रचनात्मकता को नष्ट कर सकता है और न ही अंतरिक्ष को। इसकी क्षमता लकड़ी को राख में बदलने तक सीमित है और यह दोनों भौतिक रूप हैं। पानी भी रचनात्मकता या अंतरिक्ष को घुला नहीं सकता। इसी तरह हवा में उन्हें मुरझाने की न तो शक्ति है और न कौशल है।

रचनात्मकता सृजन को अस्तित्व में ला सकती है, लेकिन सृजन में रचनात्मकता को प्रभावित करने की शक्ति नहीं है। महत्वपूर्ण बात दिशा है। आकाश में बादल आते हैं और चले जाते हैं, लेकिन वे आकाश को प्रभावित नहीं कर सकते।

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