41. आंतरिक यात्रा के लिए सुसंगत बुद्धि
हमारे भीतरी और बाहरी हिस्सों का मिलन ही योग है। इसे कर्म , भक्ति , सांख्य , बुद्धि जैसे कई मार्गों से प्राप्त किया जा सकता है। व्यक्ति अपनी प्रकृति के आधार पर उसके अनुकूल मार्गों से योग प्राप्त कर सकता है। श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं : इस समत्वरूप बुद्धियोग से सकाम कर्म अत्यन्त ही निम्न श्रेणी का है। इसलिए तू समबुद्धि में ही रक्षा का उपाय ढूंढ अर्थात बुद्धियोग का ही आश्रय ग्रहण कर , क्योंकि फल के हेतु बनने वाले अत्यन्त दीन हैं (2.49) । इससे पहले , श्रीकृष्ण ने (2.41) कहा कि कर्मयोग में , बुद्धि सुसंगत है और जो अस्थिर हैं उनकी बुद्धि बहुत भेदोंवाली होती है। एक बार जब बुद्धि सुसंगत हो जाती है , जैसे एक आवर्धक कांच प्रकाश को केंद्रित करता है , तो वह किसी भी बौद्धिक यात्रा में सक्षम होता है। स्वयं की यात्रा सहित किसी भी यात्रा में दिशा और गति शामिल होती है। श्रीकृष्ण का यहाँ बुद्धि योग का संदर्भ अन्तरात्मा की ओर यात्रा की दिशा के बारे मे