72. धारणाओं का कैदी


 श्रीकृष्ण कहते हैं कि, ‘‘प्रकृति के गुणों से अत्यन्त मोहित हुए मनुष्य गुणों में और कर्मों में आसक्त रहते हैं, उन पूर्णतया न समझनेवाले मंदबुद्धि अज्ञानियों को पूर्णतया जाननेवाला विचलित न करे’’ (3.29)

वास्तविक कर्ता होने के अलावा, गुणों में सम्मोहित करने और हम पर जादू करने की क्षमता होती है जो हमें हमारे वास्तविक स्वरूप को भुला देती है। हम तब तक मंत्रमुग्ध रहते हैं जब तक हमें एहसास नहीं हो जाता कि हम जादू के अधीन हैं।

श्रीकृष्ण अज्ञानी और बुद्धिमान के बारे में बताते हैं। अज्ञानी गुण के मन्त्रमुग्धता या माया के अधीन रहकर यह महसूस करते हैं कि वे कर्ता हैं (3.27)। अज्ञानी चीजों को प्राप्त करना, महत्वपूर्ण होना, मान्यता प्राप्त करना और अधिकारों के लिए लडऩा चाहते हैं। साथ ही, वे परिवार, कार्यस्थल और समाज में दूसरों को कर्ता मानते हैं और उनसे अपेक्षा करते हैं कि वे उनकी अपेक्षाओं के अनुसार व्यवहार करें। जब ऐसा नहीं होता है तो अपराध बोध, खेद, क्रोध और दु:ख से वे पीडि़त हो जाते हैं।

जागरूकता का दूसरा चरण यह है, कि किसी घटना के घटने के पश्चात जागरूकता उत्पन्न होती है जहाँ यह अवधि कुछ क्षण, वर्ष, दशक या जीवन काल भी हो सकता है। ये घटनाएं वे शब्द हो सकते हैं जो हम बोलते हैं, वे इच्छाएं जिनसे हम जकड़े हुए हैं, वे निर्णय जो हम लेते हैं, या वे कर्म जो हम करते हैं, वे हमारे अंदर मौजूद गुणों के कारण होते हैं।

जागरूकता का तीसरा चरण, वर्तमान क्षण में ही समझना है कि गुण गुणों के साथ परस्पर प्रक्रिया डाल रहे हैं और हम कर्ता नहीं हैं (3.27)। यह आनंदपूर्वक अवलोकन करने की कला है।

अज्ञानी भी समय के साथ अपने स्वधर्म के अनुसार जागरूकता की स्थिति में पहुंच जाएगा और इसलिए श्रीकृष्ण बुद्धिमानों को अज्ञानी को विचलित किए बिना प्रतीक्षा करने का परामर्श देते हैं।

हम सभी जिस दुनिया में रहते हैं उसकी कई धारणाएं रखते हैं और अज्ञानी इन धारणाओं के कैदी हैं। जीवन में एकत्रित इन धारणाओं को दूर करना ही बुद्धिमानी है।

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