79. समय से परे
श्रीमद्भगवद्गीता दो स्तरों का एक सुसंगत समिश्रण है और हमें गीता को समझने के लिए इसके बारे में जागरूक होने की आवश्यकता है। कभी-कभी श्रीकृष्ण मित्र या मार्गदर्शक के रूप में अर्जुन से व्यवहार करके मनुष्यों के सामने आने वाली दैनिक समस्याओं को समझाते हैं। कभी-कभी वह परमात्मा के रूप में आते हैं और उस अवस्था में वह कहते हैं कि मैंने यह अविनाशी योग विवस्वत को दिया था , जो उत्तराधिकार में राज-ऋषियों को सौंप दिया गया था ( 4.1) और समय के साथ यह योग लुप्त हो गई थी ( 4.2) । विवस्वत का अनुवाद सूर्य-भगवान के रूप में किया गया है , जो प्रकाश का एक रूपक है। यह स्वीकार किया जाता है कि इस ब्रह्माण्ड की शुरुआत प्रकाश से हुई और बाद में पदार्थ का गठन हुआ। मगर श्रीकृष्ण संकेत कर रहे हैं कि वे प्रकाश से भी पहले थे। श्रीकृष्ण राज-ऋषियों को संदर्भित करते हैं जो समय के विभिन्न बिंदुओं पर प्रबुद्ध लोगों के अलावा और कुछ नहीं हैं। यह ज्ञान लुप्त हो गया क्योंकि समय के साथ यह एक अनुभवात्मक स्तर से कर्मकांड या अनुष्ठान में बदल गया। अभ्यास कम और उपदेश अधिक हो गया एवं धर्मों और संप्रदायों का आकार ले ल...