92. स्वास के माध्यम से आनंद
मानव शरीर में कुछ गतिविधियां जैसे दिल की धडक़न स्वचालित होती है , हालांकि वे एक निर्धारित लय का पालन जरूर करती हैं जबकि कुछ गतिविधियों जैसे लिम्बिक सिस्टम को नियंत्रित किया जा सकता है। लेकिन सांस अद्वितीय है क्योंकि यह स्वचालित है और इसे नियंत्रित भी किया जा सकता है। यज्ञ रूपी नि:स्वार्थ कर्म और सांस के सन्दर्भ में , श्रीकृष्ण कहते हैं , कुछ लोग प्राण यानी अंदर आने वाली सांस को अपान यानी बाहर जाने वाली सांस में और अपान को प्राण में बलिदान के रूप में पेश करते हैं ; कुछ प्राण और अपान को रोककर प्राणायाम में लीन हो जाते हैं ( 4.29) । सांस की अवधि और गहराई मन की स्थिति को दर्शाती है। उदाहरण के लिए , जब हम क्रोधित होते हैं तो हमारी सांस अपने आप तेज और हल्की हो जाती है। इसके विपरीत अपनी सांसों को धीमी और गहरी बनाकर हम अपने क्रोध पर नियंत्रण कर सकते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि सांस को नियंत्रित करके मन को नियंत्रित किया जा सकता है जिसने ध्यान और प्राणायाम की कई तकनीकों को जन्म दिया। भगवान शिव ने पार्वती से 112 ध्यान के तकनीकों की व्याख्या करते हुए लगभग 16 तकनीकों का उल्ल