60. विषाद से ज्ञानोदय तक

श्रीकृष्ण कहते हैं : जैसे नाना नदियों के जल सब ओर से परिपूर्ण अचल प्रतिष्ठा वाले समुद्र में उसको विचलित न करते हुए ही समा जाते हैं वैसे ही सब भोग जिस स्थितप्रज्ञ पुरुष में किसी प्रकार का विकार उत्पन्न किये बिना ही समा जाते हैं , वही पुरुष परम शांति को प्राप्त होता है , भोगों को चाहने वाला नहीं (2.70) । वे आगे कहते हैं : जो पुरुष सम्पूर्ण कामनाओं को त्यागकर ममतारहित , अहंकाररहित और स्पृहरहित हुआ विचरता है , वही शांति को प्राप्त होता है अर्थात वह शांति को प्राप्त है (2.71) । यह ब्रह्म को प्राप्त हुए पुरुष की स्थिति है , इसको प्राप्त होकर योगी कभी मोहित नहीं होता और अन्तकाल में भी इस ब्राह्मी स्थिति में स्थिर होकर ब्रह्मानन्द को प्राप्त हो जाता है (2.72) । श्रीकृष्ण इस शाश्वत अवस्था ( मोक्ष - परम स्वतंत्रता , आनंद और करुणा ) की तुलना करने के लिए समुद्र का उदाहरण देते हैं और नदियाँ इंद्रियों द्वारा लगातार प्राप्त होने वाली उत्तेजनाएं हैं। सा...