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Showing posts from September, 2025

188. अस्तित्व के अनुरूप

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  श्रीकृष्ण कहते हैं , " जिनके लिए स्तुति और निंदा समान हैं , जो मौन रहते हैं , जो मिल जाए उसमें संतुष्ट रहते हैं , जो रहने की जगह से बंधे नहीं हैं , जिनकी बुद्धि दृढ़तापूर्वक मुझमें स्थिर रहती है ; जो भक्त यहां बताए गए इस अमृत रूपी ज्ञान ( धर्म ) का पालन करते हैं , जो श्रद्धा के साथ तथा निष्ठापूर्वक मुझे अपना परम लक्ष्य मानकर मुझ पर समर्पित होते हैं , वे मुझे अति प्रिय हैं " (12.19 और 12.20) । प्रशंसा और निंदा अहंकार के खेल के अलावा कुछ नहीं है। अहंकार प्रशंसा से प्रफुल्लित होता है और निंदा से आहत होता है। जब हम स्वयं में केंद्रित होते हैं , जिसे श्रीकृष्ण ने पहले आत्मवान कहा था , तो प्रशंसा और निंदा हम पर प्रभाव डालने की अपनी क्षमता खो देते हैं।   यह भगवद गीता के 12 वें अध्याय ' भक्ति योग ' का समापन करता है। आसानी से अपनाने के लिए , भगवान श्रीराम के द्वारा अपने भक्त सबरी को बताए गए भक्ति के नौ मार्ग रामायण में उल्लेखित हैं।...

187. आटे के पीछे कांटा छिपा होता है

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  श्रीकृष्ण कहते हैं , " वह जो न हर्षित होता है , न द्वेष करता है , न शोक करता है , न कामना करता है , शुभ और अशुभ सभी कर्मों का त्याग करता है , मित्र - शत्रु और मान - अपमान के प्रति सम है , सर्दी और गर्मी के अनुभवों और सुख - दुःख के द्वंद्वों में सम है , आसक्ति से रहित , भक्ति से परिपूर्ण है वह मुझे अत्यधिक प्रिय है " (12.17 और 12.18) । यह इन भावनाओं और संवेदनाओं को साक्षी भाव से देखना है न कि इनसे अपनी पहचान बनाना।   एक नवजात ' सार्वभौमिक शिशु ' होता है जिसके मस्तिष्क में भविष्य की आवश्यकताओं और चुनौतियों का सामना करने के लिए कई स्वतंत्र न्यूरॉन्स होते हैं। प्रारंभिक वर्षों के दौरान , पालन - पोषण , परिवार , समाज आदि के आधार पर उसके कई तंत्रिका प्रतिरूप ( neural pattern) बनते हैं। ये प्रतिरूप बाहरी स्थितियों और लोगों को अच्छे या बुरे के रूप में विभाजित करते हैं। इसीलिए श्रीकृष्ण ने पहले सुझाव दिया था कि बुद्धि से संपन्न व्यक्ति अच्छे ...