54. इंद्रियों की स्वचालितता
श्रीकृष्ण
अर्जुन को सावधान करते
हैं: अशांत इंद्रियां यत्न करते हुए
बुद्धिमान पुरुष के मन को
भी बलपूर्वक हर लेती हैं
(2.60)। यह श्लोक उत्तेजना
से भरी इंद्रियों की
स्वचालितता के बारे में
है।
सबसे
अच्छा उदाहरण एक धूम्रपान करने
वाले का है जो
धूम्रपान के नुकसान से
अच्छी तरह अवगत है,
लेकिन इसे छोडऩा बेहद
मुश्किल है और असलियत
यह है कि जब
तक उसे पता चलता
है, सिगरेट पहले ही जल
चुकी होती है। कोई
भी जो सडक़ पर
हिंसक रोष में (रोड
रेज) या अपराध में
शामिल है, यह प्रमाणित
करता है कि यह
क्षण भर की गर्मी
में हुआ और जानबूझकर
नहीं। ऐसा ही किसी
के साथ होता है
जो कार्यस्थल पर या परिवार
में कठोर शब्द बोलता
है और उसके बारे
में पछताता रहता है क्योंकि
उनका ऐसा करने का
इरादा नहीं था। इन
उदाहरणों का अर्थ यह
है कि इंद्रियां हमें
अपने वश में ले
लेती हैं और हमें
कर्म बंधन में बांध
देती हैं।
हमारे
प्रारंभिक वर्षों के दौरान, मस्तिष्क
में मुक्त न्यूरॉन्स चलने जैसी स्वचालित
गतिविधियों की देखभाल करने
के लिए हार्डवायरिंग नामक
जोड़ बनाते हैं क्योंकि यह
मस्तिष्क की बहुत सारी
ऊर्जा को बचाता है।
यही बात कौशल और
आदतों के मामले में
भी होता है जो
हम जीवन के उत्तरार्ध
में हासिल करते हैं।
मेहनत
और ऊर्जा खर्च करके बनाया
हुआ हार्डवायरिंग, जो अन्यथा आवश्यक
है, इतनी शक्तिशाली हो
जाती है कि हार्डवायरिंग
के आधार पर आदतों
को दूर करना बेहद
मुश्किल होता है। न्यूरोसाइंस
का कहना है कि
हार्डवायरिंग को तोडऩा असंभव
है बल्कि एक नया हार्ड
वायरिंग बनाना आसान है।
श्रीकृष्ण
भगवान इसी प्रक्रिया का
जिक्र करते हुए कहते
हैं कि इंद्रियां इतनी
शक्तिशाली हैं कि वे
एक बुद्धिमान व्यक्ति के दिमाग को
भी हर सकती हैं।
श्रीकृष्ण
कहते हैं (2.61) कि व्यक्ति को
सर्वशक्तिमान के सामने आत्मसमर्पण
करना चाहिए ताकि इंद्रियों की
स्वचालितता पर काबू पाया
जा सके। इंद्रियों से
लडऩा नहीं है, बल्कि
जागरूकता के साथ समर्पण
करना है, जो आवश्यक
शक्ति का स्रोत है।
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