156. परमात्मा निष्पक्ष हैं
श्रीकृष्ण कहते हैं,
"मैं सभी जीवों के प्रति समभाव रखता हूँ। मेरे लिए कोई भी द्वेष्य नहीं है और न ही प्रिय है। लेकिन जो प्रेम से मेरी भक्ति करते हैं, वे मुझमें हैं और मैं भी उनमें हूँ" (9.29)। हम देखते हैं कि कुछ लोग स्वास्थ्य, धन,
शक्ति और प्रसिद्धि के मामले में भाग्यशाली होते हैं जबकि कुछ नहीं होते। इससे प्रभु के पक्षपात करने का आभास होता है। परमात्मा की कृपा व प्रेम बिना किसी शर्त के होती है। यद्यपि हमारे लिए प्रेम तब प्रवाहित होता है जब कुछ शर्तें पूरी होती हैं। इन मुद्दों के कारण उक्त श्लोक को समझना कठिन हो जाता है।
चाहे कोई कितना ही पापी क्यों न हो, दृढ़ संकल्प एवं भक्ति के साथ वह ईश्वर तक पहुंच सकता है। इस संबंध में,
श्रीकृष्ण कहते हैं, "सदैव मेरा चिन्तन करो, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो। इस प्रकार अपने मन और शरीर को मुझे समर्पित करने से तुम निश्चित रूप से मुझको ही प्राप्त होगे" (9.34)। यह सर्वशक्तिमान की ओर से तत्काल परम स्वतंत्रता (मोक्ष)
का आश्वासन है।

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