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Showing posts from February, 2025

167. अस्तित्व का बीज

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  श्रीकृष्ण कहते हैं , " मैं सभी प्राणियों का जनक बीज हूँ। कोई भी चर या अचर मेरे बिना नहीं रह सकता (10.39) । मेरी दिव्य अभिव्यक्तियों का कोई अंत नहीं है। जो कुछ मैंने तुमसे कहा है वह मेरी अनन्त विभूतियों का संकेत मात्र है " (10.40) ।   परमात्मा अस्तित्व का बीज हैं और समकालीन वैज्ञानिक समझ में इस बीज को ' बिग बैंग ' कहा जाता है। अस्तित्व एक विशाल वृक्ष की तरह है जो एक छोटे से बीज से विकसित हुआ है। ऐसे वृक्ष के फलों को इस वास्तविकता को समझने में कठिनाई होती है और वे किसी न किसी शाखा से अपनी पहचान बनाने के लिए प्रवृत्त होते हैं। इसी प्रकार , हम भी किसी न किसी अभिव्यक्ति के साथ पहचान बनाने की प्रवृत्ति रखते हैं। इससे हमारे आसपास महसूस करने वाले विभाजन और मतभेद पैदा होते हैं।   श्रीकृष्ण आगे कहते हैं , " यह जान लो कि जो भी विभूतियुक्त अर्थात ऐश्वर्य , सौंदर्य या तेजस्वी युक्त सृष्टियाँ हैं , उन सबको तुम मेरे तेज के अ...

166. तुम ‘मैं’ हो

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  श्रीकृष्ण कहते हैं , " मैं सबके जन्म का कारण हूँ और मैं सर्वभक्षी मृत्यु भी हूँ। स्त्रियों के गुणों में मैं कीर्ति , समृद्धि , मधुर वाणी , स्मृति , बुद्धि , साहस और क्षमा हूँ (10.34) । सामवेद के गीतों में मैं बृहत्साम हूँ और छन्दों में मैं गायत्री मन्त्र हूँ। मैं बारह मासों में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में वसन्त ऋतु हूँ (10.35) । समस्त छलियों में मैं जुआ हूँ और तेजस्वियों में तेज हूँ। मैं विजय हूँ , संकल्पकर्ताओं का संकल्प और धर्मात्माओं का धर्म हूँ (10.36) । मैं शासकों का दंड हूँ , विजय की आकांक्षा रखने वालों में उनकी उपयुक्त नीति हूँ , मैं रहस्यों में मौन हूँ और बुद्धिमानों में उनका ज्ञान हूँ " (10.38) ।   वह आगे कहते हैं , " वृष्णि के वंशजों में मैं वासुदेव ( श्रीकृष्ण ) हूँ और पाण्डवों में अर्जुन हूँ। समस्त मुनियों में मैं वेदव्यास और महान कवियों में शुक्राचार्य हूँ " (10.37) । दिलचस्प बात यह है कि श्रीकृष्ण कहते हैं कि मैं अर्जुन ह...