192. ‘वह’ हैं भी और नहीं भी
जीवित रहने के लिए जिज्ञासा आवश्यक है। वर्त्तमान के संदर्भ में , अपने व्यावसायिक और व्यक्तिगत जीवन में अद्यतन ( up-to-date) रहने की उम्मीद की जाती है। अर्जुन प्रश्न करते हैं कि क्या जानने योग्य है (13.1) । इसके बारे में , श्रीकृष्ण ने पहले उल्लेख किया था कि " जब ' उसे ' जान लेते हैं तो जानने के लिए कुछ भी नहीं बचता " (7.2) । श्रीकृष्ण कहते हैं , " जो जाननेयोग्य है तथा जिसको जानकर मनुष्य परमानन्द को प्राप्त होता है उसको भलीभांति कहूंगा। वह अनादिवाला परमब्रह्म न सत् ही कहा जाता है न असत् ही (13.13) । वह सब ओर हाथ - पैर वाला , सब ओर नेत्र , सिर और मुख वाला तथा सब ओर कान वाला है ; क्योंकि वह संसार में सबको व्याप्त करके स्थित है (13.14) । वह सम्पूर्ण इन्द्रियों के विषयों को जानने वाला है , परन्तु वास्तव में सब इन्द्रियों से रहित है तथा आसक्ति रहित होने पर भी सबका धारण - पोषण करने वाला और निर्गुण होने पर भी गुणों को भोगनेवाला...